🚀 भारत का Chandrayaan‑4 कब लॉन्च होगा? ISRO का चाँद से मिट्टी लाने वाला मिशन तैयार
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ISRO ने चंद्र नमूना-वापसी मिशन की तैयारियाँ तेज कीं
भारत का अगला बड़ा चंद्र मिशन चंद्रयान‑4 अब “सैंपल रिटर्न” यानी –चाँद की मिट्टीपत्थर के नमूने पृथ्वी पर लाने के लक्ष्य के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह मिशन 2027–28 की समय-सीमा में लक्षित है और भारत को चंद्र सतह से नमूने लौटाने वाले चुनिंदा देशों की कतार में खड़ा करेगा। हाल में ISRO ने इस मिशन को लेकर देशभर के वैज्ञानिकों के साथ विशेष बैठक भी की, जिसमें नमूनों की विज्ञान-योजना और क्यूरेशन सुविधाओं पर चर्चा हुई। ISRO
क्या है चंद्रयान‑4 का मकसद?
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चंद्र सतह से नमूने इकट्ठा करके सुरक्षित रूप से पृथ्वी तक लाना—ताकि हमारी प्रयोगशालाओं में उनकी हाई‑प्रिसीजन जाँच हो सके। ISRO
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लक्ष्य क्षेत्र दक्षिणी ध्रुव के पास रखा गया है, क्योंकि यहाँ बर्फ/जल‑बर्फ की मौजूदगी की संभावना और वैज्ञानिक महत्व बहुत अधिक है।
मिशन कैसे पूरा होगा? (ऑपरेशन की झलक)
यह अब तक का भारत का सबसे जटिल चंद्र अभियान होगा, जिसमें दो अलग‑अलग प्रक्षेपण होंगे और कक्षा में डॉकिंग जैसी उन्नत तकनीकें आजमाई जाएँगी। संक्षेप में—
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पहला LVM3 प्रक्षेपण: लैंडर + सैंपल‑कलेक्ट करने वाला असेन्टर चाँद पर उतरेगा, नमूने भरेगा और फिर चंद्र कक्षा में लौटेगा।दूसरा LVM3 प्रक्षेपण: ट्रांसफर मॉड्यूल + री‑एंट्री कैप्सूल चंद्र कक्षा में पहुँचेंगे।
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कक्षा में मिलन/डॉकिंग: असेन्टर नमूने री‑एंट्री कैप्सूल को सौंपेगा।
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वापसी: री‑एंट्री कैप्सूल नमूनों के साथ पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर नियंत्रित लैंडिंग करेगा।
ISRO ने आधिकारिक रूप से दो प्रक्षेपणों और इन‑स्पेस डॉकिंग की तैयारी का संकेत दिया है; मीडिया ब्रीफिंग्स में पाँच मॉड्यूल वाला आर्किटेक्चर (डिसेंडर/असेन्टर/ट्रांसफर/री‑एंट्री/प्रोपल्शन) साझा किया गया है।
कब तक?—टाइमलाइन की स्थिति
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ISRO की अप्रैल 2025 की वैज्ञानिक बैठक में मिशन को 2027–28 समय-सीमा के लिए लक्षित बताया गया। यह मीट नमूना विज्ञान, क्यूरेशन लैब और संभावित लैंडिंग साइट्स पर केंद्रित थी। ISRO
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खुले स्रोत आकलनों में 2028 का लक्ष्य उल्लेखित है; अंतिम लॉन्च विंडो इंजीनियरिंग तैयारियों पर निर्भर करेगी। Space
सरकारी मंजूरी, लागत और स्वदेशी तकनीक
भारत सरकार ने सितंबर 2024 में चंद्रयान‑4 को कैबिनेट से मंज़ूरी दी—यह मिशन चंद्र सतह से नमूने लाने‑ले जाने, डॉकिंग/अनडॉकिंग, और सुरक्षित री‑एंट्री जैसी आधारभूत तकनीकों का प्रदर्शन करेगा। स्वीकृत लागत ₹2104.06 करोड़ है और इसमें दो LVM3 प्रक्षेपण, बाहरी डीप‑स्पेस नेटवर्क सपोर्ट और विशेष परीक्षण शामिल हैं।
कहाँ उतरेगा?
योजना के अनुसार दक्षिणी ध्रुव के ऊँचे अक्षांश (लगभग 85–90°S) के बीच कोई क्षेत्र लक्षित हो सकता है—यहीं जल‑बर्फ और सतही‑उपसतही बर्फ की वैज्ञानिक खोज सबसे रोचक मानी जाती है। अंतिम साइट की घोषणा मिशन समीप आते समय होगी। ।
विज्ञान के मोर्चे पर तैयारी
ISRO ने लूनर सैंपल साइंस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों को जोड़ा है—मीट में ~50 वैज्ञानिकों ने नमूना‑विश्लेषण, क्यूरेशन सुविधाएँ, और रिमोट‑सेंसिंग को ग्राउंड‑ट्रुथ से बाँधने जैसे विषयों पर रोडमैप बनाया। यह पहल आगे चलकर मानवों की चंद्र यात्रा (लक्ष्य: 2040) के लिए भी ज्ञान‑आधार तैयार करेगी। ISRO
आगे क्या?—LUPEX/चंद्रयान‑5 से तालमेल
चंद्रयान‑4 के बाद चंद्रयान‑5 / LUPEX (ISRO‑JAXA) मिशन चंद्र दक्षिण ध्रुव के वाष्पशील तत्वों/जल‑बर्फ की इन‑सीटू जाँच करेगा। इसे जापान के H3‑24L रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा; लैंडर ISRO का और 350‑किग्रा वर्ग का रोवर जापान (MHI) का होगा। परियोजना को मार्च 2025 में वित्तीय मंजूरी मिल चुकी है। ISRO
क्यों मायने रखता है?
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भारत चंद्र नमूना‑वापसी जैसी हाई‑एंड तकनीकों—इन‑ऑर्बिट डॉकिंग, चंद्र टेक‑ऑफ, पृथ्वी पर री‑एंट्री—को परखने जा रहा है। इससे भविष्य के क्रू‑लूनर मिशन और चंद्र अनुसंधान के लिए ठोस आधार बनेगा। https://thenewsrohit.blogspot.com/
संक्षेप में: चंद्रयान‑4 भारत के लिए “अगला बड़ा कदम” है—पहले चंद्रयान‑3 की सॉफ्ट‑लैंडिंग सफलता, अब नमूना वापस लाने की चुनौती। यदि समय पर सभी तकनीकी परीक्षण पास होते हैं, तो दशक के उत्तरार्ध में हम चाँद की मिट्टी अपने लैब में परखते देख सकते हैं—भारतीय अंतरिक्ष कहानी का सचमुच नया पन्ना। ISROSpace https://thenewsrohit.blogspot.com/
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