भारत की ऊर्जा नीति पर वैश्विक हलचल: रूस और अमेरिका दोनों से दोस्ती | 3 अगस्त 2025
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🔰प्रस्तावना: ऊर्जा युद्ध के बीच भारत की रणनीतिक चाल
- 2025 में भारत सिर्फ एक तेल खरीददार नहीं, बल्कि एक समझदार रणनीतिक खिलाड़ी बन चुका है। एक ओर वो रूस से सस्ता कच्चा तेल ले रहा है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका से LNG और क्रूड का आयात भी बढ़ा रहा है।
- इन दो महाशक्तियों के बीच अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरी करते हुए भारत ने दिखा दिया है कि उसकी विदेश नीति अब आत्मनिर्भर, नपे-तुले और दमदार फैसलों पर आधारित है।
🛢️भारत और रूस: पुराना साथी, सस्ते दाम
🔹 क्या है मुख्य बात?
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भारत, रूस से 2022 के बाद से लगातार सस्ते रेट पर कच्चा तेल खरीद रहा है।
रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है।
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2025 की पहली छमाही में भारत के कुल आयात में 35% से अधिक हिस्सा सिर्फ रूस का रहा।
📌 क्यों कर रहा है भारत ऐसा?
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सस्ते दाम – ग्लोबल मार्केट से 20–30% तक सस्ता तेल।
दीर्घकालिक अनुबंध – लॉन्ग टर्म सप्लाई का भरोसा।
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राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर – भारत ने साफ कहा है: "हम राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेते हैं।"
🛢️ भारत और अमेरिका: रणनीति में ऊर्जा साझेदारी
🔹 क्या हुआ है?
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अमेरिका से LNG (गैस) और Crude Oil का आयात भारी मात्रा में बढ़ाया गया है।
2024–25 में:
LNG आयात में 75% की वृद्धि।
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क्रूड ऑयल आयात में 51% की बढ़ोतरी।
📌 क्यों बढ़ाया गया है आयात?
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अमेरिका से व्यापार संतुलन बनाए रखने का दबाव।
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद भारत पर "बैलेंस्ड ट्रेड" की शर्तें लगीं।
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भारत ने जवाब दिया – "हम आपकी ऊर्जा भी लेंगे, लेकिन अपनी शर्तों पर!"
⚖️ संतुलन की रणनीति: दोनों तरफ की साझेदारी का खेल
- भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अब किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता। आज उसकी नीति है:
- "जहाँ से लाभ मिले, वहीं से व्यापार करो – लेकिन आत्मसम्मान के साथ।"
🔄 तुलना तालिका:
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🌐 वैश्विक असर: भारत बना ‘ऊर्जा संतुलन’ का केंद्र
🌟 भारत की छवि कैसी बन रही है?
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अब भारत को 'ग्लोबल बैलेंसर' के रूप में देखा जा रहा है।
- ना अमेरिका को नाराज़ कर रहा है, ना रूस से दूरी बना रहा है।
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यह नीति अब दुनिया के अन्य विकासशील देशों के लिए मिसाल बन गई है।
📌 निष्कर्ष: भारत की ऊर्जा नीति बनी अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय
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भारत की ऊर्जा नीति में आत्मनिर्भरता, रणनीति और दृढ़ता का शानदार मेल है।
वैश्विक दबावों के बीच भारत ने दिखाया कि "राष्ट्रीय हितों से बड़ा कुछ नहीं होता।"
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आने वाले समय में भारत की यह नीति उसे ऊर्जा-सुरक्षा और वैश्विक नेतृत्व दोनों दिला सकती है।
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