प्रकृति की ताकत का उफान: जब बारिश का गुस्सा और सिस्टम की कमी मिल जाए तो तबाही बढ़ती है /
भारत इस समय लगातार बाढ़, भारी बारिश और जलभराव की समस्या से जूझ रहा है। उत्तर भारत से लेकर गुजरात और दिल्ली तक, हालात ऐसे बन गए हैं कि गांव-कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक पानी-पानी हो गया है। यह संकट केवल प्राकृतिक कारणों की देन नहीं है, बल्कि इंसानी लापरवाही और सरकारी सिस्टम की कमजोरियां भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही हैं।
प्रकृति का क्रोध: जब मॉनसून और सिस्टम की कमियाँ मिलकर भारत को पानी में डुबो देती हैंhttps://www.newsrohit.com/2025/09/bhiwandi-crime-17.html
भारी मॉनसून और जलवायु परिवर्तन का असर
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस बार मॉनसून ने सामान्य से कहीं अधिक बारिश दी है। उत्तराखंड, हिमाचल, पंजाब और हरियाणा में लगातार बादल फटने जैसी घटनाएं हुईं। विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन (climate change) के कारण बारिश का पैटर्न असामान्य हो गया है। पहले जहां धीरे-धीरे बारिश होती थी, अब अचानक कुछ ही घंटों में महीनों का पानी बरस जाता है। यह प्राकृतिक परिस्थिति गांव और शहर दोनों के लिए खतरा बन रही है। https://www.newsrohit.com/
शहरीकरण और गलत प्लानिंग
देश के बड़े शहरों में तेज रफ्तार से शहरीकरण हुआ है। दिल्ली, गुरुग्राम, चंडीगढ़ और लखनऊ जैसे शहरों में कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। नाले और जलनिकासी के प्राकृतिक रास्ते कंक्रीट और इमारतों से ढक दिए गए। नतीजा यह हुआ कि थोड़ी सी तेज बारिश में ही सड़कें तालाब बन जाती हैं।
यहां तक कि जहां ड्रेनेज सिस्टम मौजूद है, वहां भी सफाई और रखरखाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। यह लापरवाही आम लोगों की परेशानी बढ़ा रही है।
नदियों के किनारे अतिक्रमण
देश के कई हिस्सों में नदियों और नालों के किनारे अनधिकृत निर्माण हो गए हैं। इन निर्माणों के चलते पानी का प्राकृतिक रास्ता रुक जाता है और बाढ़ का पानी सीधा बस्तियों और खेतों में घुस जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि स्थानीय प्रशासन समय रहते इन अतिक्रमणों को हटाता, तो नुकसान काफी कम हो सकता था।
https://www.newsrohit.com/2025/09/blog-post_3.html
बाँध और जल प्रबंधन की कमी
बाढ़ की एक बड़ी वजह यह भी है कि जब नदियों में अचानक पानी छोड़ा जाता है तो नीचे बसे गांव डूब जाते हैं। वैज्ञानिक तरीके से पानी छोड़ने का प्रबंधन अक्सर नहीं हो पाता। अगर जल प्रबंधन की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो और समय पर अलर्ट जारी किया जाए, तो जान-माल की हानि कम हो सकती है।
आपदा प्रबंधन में तैयारी की कमी
भारत में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन एजेंसियां हैं, लेकिन बाढ़ और बारिश जैसे संकट के समय इनकी तैयारी हर जगह समान नहीं रहती। कुछ जिलों में राहत और बचाव दल देर से पहुंचते हैं, तो कहीं पर उपकरण और नावें पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होतीं। यही वजह है कि लोग कई बार अपनी जान बचाने के लिए खुद पर ही निर्भर रहते हैं। https://www.newsrohit.com/
प्रकृति का क्रोध: मॉनसून का कहर और सिस्टम की कमियाँसरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी
इस पूरे संकट में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या केवल प्रकृति ही जिम्मेदार है? विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकारें और स्थानीय निकाय पहले से योजनाबद्ध तरीके से काम करें—
- जलनिकासी व्यवस्था की समय पर सफाई करें
- अतिक्रमण रोकें
- नदियों और बांधों का वैज्ञानिक प्रबंधन करें
- और आपदा प्रबंधन दल को हर स्तर पर तैयार रखें
- तो हालात इतने बिगड़ते नहीं।
आगे की राह
भारत जैसे विशाल देश में बारिश और बाढ़ से पूरी तरह बचना संभव नहीं है। लेकिन आधुनिक शहरी योजना, जल प्रबंधन तकनीक और कड़े प्रशासनिक कदमों से नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के साथ जीते हुए हमें यह मानना होगा कि केवल प्रकृति पर दोष डालना समाधान नहीं है। इंसानी लापरवाही और सरकारी सिस्टम की खामियों को दूर किए बिना हर साल यही हालात दोहराए जाएंगे। https://www.newsrohit.com/
