लखनऊ में मायावती की महारैली: बसपा समर्थकों का जनसैलाब और नई रणनीति

 बसपा की महारैली में उमड़ा जनसैलाब: मायावती के तेवर, घोषणाएं और भीड़ की असली कहानी

लखनऊ में गुरुवार को बहुजन समाज पार्टी (BSP) की महारैली में मायावती का पुराना जादू एक बार फिर देखने को मिला। कांशीराम की पुण्यतिथि पर आयोजित इस रैली ने राजधानी की राजनीति को पूरी तरह गर्म कर दिया। पार्टी कार्यकर्ताओं के नीले झंडों से पूरा मैदान नीला हो उठा, और मायावती के मंच पर आते ही बहनजी जिंदाबाद के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठा। सवाल अब यह है कि क्या ये भीड़ आने वाले चुनाव में बसपा के लिए उर्जा का नया स्रोत बनेगी, या सिर्फ़ एक दिखावटी ताकत का प्रदर्शन थी।

मायावती रैली 2025 में लखनऊ का स्मृति उपवन भरा हुआ था।
                                         मायावती ने विकास और समाज कल्याण पर जोर दिया।

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भीड़ का समंदर और तस्वीरों की सच्चाई

सुबह से ही लखनऊ के स्मृति उपवन और उसके आसपास के इलाकों में लोगों का जमावड़ा शुरू हो गया था। बसों, ट्रैक्टरों और जीपों से हजारों कार्यकर्ता पहुंचे। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने इसे दो लाख से अधिक लोगों की भीड़ बताया, जबकि बसपा समर्थकों का दावा है कि संख्या पाँच लाख के पार थी। भीड़ का यह नज़ारा सोशल मीडिया पर छा गया कोई इसे बसपा की वापसी बता रहा था, तो कोई फोटो एंगल का कमाल कह रहा था। तस्वीरों में जो समंदर दिख रहा था, वह मायावती की रणनीति के साथ-साथ समर्थकों के उत्साह का भी परिणाम था। पार्टी ने रैली के आयोजन और समन्वय में भूमिका निभाई, लेकिन मौके पर आए सभी लोग अपनी मर्ज़ी और उत्साह से वहां मौजूद थे, और यही भीड़ रैली के सबसे बड़े संदेशों में से एक बनी।        रैली ने मायावती और पार्टी के संदेश को मजबूती दी।                            तस्वीरों में बसपा समर्थकों का उत्साह और एकता साफ़ दिख रही थी।

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मायावती के भाषण में आत्मविश्वास और हमला दोनों

मायावती मंच पर आते ही बेहद आत्मविश्वास में दिखीं। उन्होंने कहा कि बसपा को कोई खत्म नहीं कर सकता क्योंकि यह आंदोलन बाबा साहेब अंबेडकर और कांशीराम के विचारों से बना है। उन्होंने भाजपा और सपा दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि दोनों पार्टियां जनता को सिर्फ़ धोखा दे रही हैं जबकि बसपा विकास की असली पक्षधर है। उनका भाषण कई बार तालियों की गड़गड़ाहट में डूब गया। मायावती ने यह भी कहा कि अगर बसपा सत्ता में आती है तो सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाएगा, दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सरकारी योजनाओं में प्राथमिकता दी जाएगी।

कांग्रेस और सपा पर करारा वार

मायावती ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर भी जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सिर्फ़ घोषणाएं करती है, और समाजवादी पार्टी की सरकारों में गुंडाराज रहा है।
उनके निशाने पर अखिलेश यादव भी थे। मायावती ने बिना नाम लिए कहा कि जो लोग बसपा की बदौलत मुख्यमंत्री बने, वही आज बसपा पर ऊँगली उठा रहे हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे किसी लालच या भ्रम में न पड़ें और पूरी ताकत से बसपा को जिताने की तैयारी करें।

रैली में बहनजी जिंदाबाद के नारे गूंजे।
                                     घोषणाओं में सरकारी नौकरियों और योजनाओं की बात की गई।

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क्या रैली बस भीड़ का खेल थी?

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यह रैली मायावती के लिए दो मायनों में अहम थी। एक तो पार्टी का ग्राउंड कनेक्शन दिखाना, दूसरा – यह साबित करना कि बसपा अभी भी खत्म नहीं हुई। लेकिन सच्चाई यह भी है कि भीड़ ही राजनीति की गारंटी नहीं होती। कई बार मायावती की पिछली रैलियों में भी लाखों लोग आए, मगर वोट प्रतिशत नहीं बढ़ा। विश्लेषकों का कहना है कि भीड़ में उत्साह तो दिखा, लेकिन उसे वोट में बदलना मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

सोशल मीडिया पर भी छाई मायावती की रैली

मायावती की रैली की तस्वीरें और वीडियो पूरे दिन सोशल मीडिया पर ट्रेंड करते रहे। ट्विटर (X) पर #BSPRally और #Mayawati ट्रेंड में रहा। समर्थक इसे बसपा की वापसी की लहर बता रहे थे, जबकि विपक्षी इसे मैनेज्ड क्राउड कह रहे थे। फेसबुक और यूट्यूब पर लाइव कवरेज में लाखों लोगों ने रैली देखी। मायावती के समर्थक खासकर यूपी के पूर्वांचल और बुंदेलखंड से बड़ी संख्या में ऑनलाइन जुड़े।

संगठन की ताकत और अंदरूनी चुनौतियां

रैली की भीड़ से बसपा कार्यकर्ताओं का मनोबल ज़रूर बढ़ा है, लेकिन अंदरूनी चुनौतियां अभी भी बाकी हैं। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी के कई पुराने नेता कांग्रेस या सपा में चले गए। इसके अलावा बसपा की संगठनात्मक पकड़ कई जिलों में कमजोर हुई है। मायावती अब खुद मैदान में उतरकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुटी हैं। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जिस दिन कार्यकर्ता फिर से पहले जैसी मेहनत करने लगेंगे बसपा एक बार फिर यूपी में सरकार बनाएगी।

मायावती रैली 2025 में लखनऊ का स्मृति उपवन भरा हुआ था।
                                     रैली का मकसद जनता को जोड़ना और संदेश देना था।

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राजनीतिक संदेश और आने वाले चुनाव

यह रैली आने वाले लोकसभा चुनाव की दिशा तय कर सकती है। मायावती ने अपने भाषण में किसी भी पार्टी से गठबंधन का संकेत नहीं दिया। इसका मतलब साफ है कि बसपा फिलहाल अकेले मैदान में उतरने का मन बना रही है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर मायावती अपने कोर वोट बैंक – दलित, पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट कर पाती हैं, तो 2024 में वह फिर से किंगमेकर की भूमिका में आ सकती हैं।

भीड़ के पीछे की सच्चाई

मायावती की रैली ने यह तो साबित कर दिया कि बसपा अभी भी यूपी की राजनीति में प्रासंगिक है। लेकिन भीड़ की सच्चाई सिर्फ़ तस्वीरों से नहीं मापी जा सकती। मायावती को इस भीड़ को वोट में बदलना होगा।
उनका आत्मविश्वास और कार्यकर्ताओं का जोश दिखाता है कि बसपा का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या यह नीला समंदर चुनावी नतीजों में भी लहर बन पाएगा या फिर सिर्फ़ मैदान तक सीमित रह जाएगा।

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